why election commissioner Arun Goel resigned?
- चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने 2024 के लोकसभा चुनावों के कार्यक्रम की अपेक्षित घोषणा से कुछ दिन पहले शनिवार को इस्तीफा दे दिया। कानून मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आधिकारिक तौर पर श्री गोयल का इस्तीफा तुरंत स्वीकार कर लिया।
अपने इस्तीफे के लिए “व्यक्तिगत कारणों” को जिम्मेदार ठहराया, बावजूद इसके कि सरकार ने उन्हें पद छोड़ने से रोकने की कोशिश की थी। स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के बारे में अटकलों को तुरंत खारिज कर दिया गया, शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि श्री गोयल बिल्कुल स्वस्थ थे। - अरुण गोयल को 2022 से 2027 तक के लिए चुनाव आयुक्त बनाया गया था. वीआरएस लेने के एक दिन के अंदर ही उन्हें चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्त कर दिया गया था, जिस पर काफी विवाद हुआ था.चुनाव आयुक्त के पद से इस्तीफा देकर अरुण गोयल ने सबको चौंका दिया है. हर तरफ उनके इस्तीफ की चर्चा है. इसे लेकर विपक्ष केंद्र सरकार पर हमलावर है और सवाल पूछ रहे है कि अरुण गोयल ने इस्तीफा दिया क्यों है. उनका कहना है कि अरुण गोयल को बीजेपी सरकार ने ही साल 2022 में जल्दबाजी में पद पर नियुक्त किया था. अब ऐसा क्या हुआ कि अरुण गोयल ने रिजाइन कर दिया.
why supreme court strikes electoral bond?
- सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना पर रोक लगाने का एलान किया है। कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए इस स्कीम को असंवैधानिक करार दे दिया। इसी के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग से भी चुनावी बॉन्ड से जुड़ी अहम जानकारी मांगी है।
- कार्यवाही के दौरान, भारत के मुख्य न्यायाधीश, डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ ने पिछले 26 दिनों में एसबीआई की निष्क्रियता के बारे में सवाल किया।
- 1. सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को संविधान के खिलाफ करार दिया। कोर्ट ने कहा कि यह योजना नागरिकों के सूचना का अधिकार योजना का उल्लंघन है।
- प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
- 2. सर्वोच्च न्यायालय ने बैंकों को निर्देश देते हुए कहा कि वह अब चुनावी बॉन्ड को जारी करना बंद कर दें। इसी के साथ इन्हें जारी करने वाले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से चुनावी बॉन्ड के जरिए दी गई दान राशि की जानकारी भी मांगी है।
- 3. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने किस राजनीतिक दल को कितना चंदा मिला, इससे जुड़ी डिटेल्स भी देने का निर्देश दिया है। इसके अलावा कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह 18 अप्रैल 2019 से अब तक जारी हुए सभी किस्त के चुनावी बॉन्ड से जुड़ी पूरी जानकारी अपनी वेबसाइट पर मुहैया कराए।
what is electoral bond?
- इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया है. यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता है
और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीक़े से दान कर सकता है.
भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी. इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को क़ानूनन लागू कर दिया था.इस योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक राजनीतिक दलों को धन देने के लिए बॉन्ड जारी कर सकता है. - इन्हें ऐसा कोई भी दाता ख़रीद सकता है, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है, जिसकी केवाईसी की जानकारियां उपलब्ध हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है.योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक की निर्दिष्ट शाखाओं से 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे जा सकते हैं.
- चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती है, जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ़ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है.
- केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये चंदा दिया जा सकता है, जिन्होंने लोकसभा या विधान सभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो.
- योजना के तहत चुनावी बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि के लिए ख़रीद के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं.
- इन्हें लोकसभा चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के दौरान भी जारी किया जा सकता है.
- अरुण गोयल भारत के केंद्रीय निर्वाचन आयुक्त थे. सबकुछ बढ़िया चल रहा था. लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने वाला था. केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला चुनाव आयोग पहुंचते है. लेकिन बैठक में गोयल वहां मौजूद नहीं होते हैं और खबर सामने आती है कि अरुण गोयल ने इस्तीफा दे दिया. अरुण गोयल इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस यानी वरिष्ठ IAS अधिकारी हैं. चुनाव आयोग में उनके बॉस यानी मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) राजीव कुमार भी एक नौकरशाह थे वो भारतीय राजस्व सेवा से जुड़े थे, जिसे IRS भी कहा जाता है. इंडियन सिविल सर्विसेज परीक्षा में IRS की मेरिट आईएएस से नीचे होती है.
- मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ही इस वक्त अकेले केंद्रीय चुनाव आयोग का कामकाज देख रहे हैं. उनके साथ काम करने वाले दो चुनाव आयुक्तों के पद खाली हैं क्योंकि एक इलेक्शन कमिश्नर अनूप चंद्र पांडेय सेवानिवृत हो चुके हैं, जबकि दूसरे इलेक्शन कमिश्नर अरुण गोयल ने पद से इस्तीफा ही दे दिया है. 2022 में अरुण गोयल को 2027 तक के लिए चुनाव आयुक्त का पदभार दिया गया था. वीआरएस लेने के एक दिन के भीतर उनकी नियुक्ति पर बड़ा विवाद हुआ था और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. लेकिन सबकुछ धीरे-धीरे निपट गया. फिर अचानक अरुण गोयल ने इस्तीफा दे दिया और उनका इस्तीफा राष्ट्रपति ने फौरन स्वीकार भी कर लिया. अब जब भी ऐसा होता है तो आम आदमी के मन में कुछ सवाल खटकने लगते हैं.
अरुण गोयल के इस्तीफे से उठ रहे ये सवाल
- अरुण गोयल को लेकर भी तरह-तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. जैसे क्या उनकी सरकार या राजीव कुमार से नहीं बन रही, क्या पद पर बैठे व्यक्ति का काम सरकार के लिए परेशानी बन सकता था, क्या उनसे जुड़े किसी कोर्ट केस का फैसला आने वाला था, क्या कोई जांच की रिपोर्ट आने वाली थी, क्या गोयल की किसी और पद पर नियुक्ति होने वाली है या वह चुनाव लड़ने वाले हैं. सवाल बहुत हैं, लेकिन जवाब में इस्तीफे के साथ तीन चार चीजें हमेशा सामने आती हैं. स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा, निजी कारणों से इस्तीफा, घरेलू वजह से इस्तीफा, अंतरात्मा की आवाज पर इस्तीफा या कुछ और करने की चाह.
इस्तीफे की सही वजह बताना क्यों जरूरी है?
- डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने जब जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफा दिया तो पार्लियामेंट में आकर अपना इस्तीफा बाकायदा पढ़ा. नौ पन्ने के इस्तीफे में उन्होंने सिलसिलेवार तरीके से बताया कि लोकतंत्र में इस्तीफे की सही वजह बताना जरूरी क्यों है. एक मंत्री को अपने इस्तीफे की असली वजह बताना जरूरी माना गया है. इसकी इजाजत संसद चलाने के नियम भी देते हैं. सदन को ये पता नहीं होता की कैबिनेट कैसे काम करती है.
- सदन को पता नहीं होता कि कैबिनेट सदस्यों के बीच सद्भाव है या नहीं. मतभेद होते हैं, लेकिन पता नहीं चलते हैं इसलिए ये पता चलना जरूरी है साझी जिम्मेदारी को पूरा करने में क्या दिक्कत है. बिना कारण बताए इस्तीफा देने पर लोग मंत्री के चरित्र पर संदेह करते हैं. मीडिया के अपने पूर्वाग्रह होते हैं वो उसके आधार पर इस्तीफे के कारणों पर कयास लगाती है, जिससे लोगों के बीच गलत जानकारी पहुंचती है.
- इस्तीफा हमेशा कारण के साथ सामने आना चाहिए फिर वो किसी के खिलाफ हो या किसी के पक्ष में. अब पिछले एक दशक में हुए कुछ ऐसे ही अचानक इस्तीफों की लिस्ट देख लेते हैं, जिनका नाम सुनते ही ये बात समझ में आएगी कि अचानक हुए इस्तीफे कैसे सरकार की छवि और सिस्टम के प्रति लोगों के मन में गलत भावनाओं को जन्म देती है.
एक दशक में अचानक इस्तीफे देने वाले अफसरों की लिस्ट
- अरुण गोयल अकेले अफसर नहीं हैं, जिन्होंने निजी वजहों का हवाला देकर चुनाव वक्त से पहले चुनाव आयुक्त के पद से इस्तीफा दे दिया. अमरजीत सिन्हा प्रधानमंत्री दफ्तर में विशेष सलाहकार थे, लेकिन कार्यकाल से पहले ही इस्तीफा दे दिया और कहा कि इस्तीफे की वजह पर्सनल है. अशोक लवासा भी चुनाव आयुक्त थे, लेकिन निजी कारणों का हवाला दिया, और समय से पहले ही पद छोड़ दिया. नृपेंद्र मिश्रा प्रधानमंत्री मोदी के प्रिंसिपल सेक्रेटरी थे, अगस्त 2019 में इस्तीफा दिया, वजह सामने नहीं आई. हालांकि बाद में मिश्रा राम मंदिर निर्माण समिति अध्यक्ष बनाए गए.
- भारत सरकार के फाइनेंशियल सर्विसेज में सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने वीआरएस ले लिया, वजह सामने आई नाराजगी, गर्ग का एक मंत्रालय से दूसरे मंत्रालय में अचानक तबादला हुआ था. विरल आचार्य आरबीआई के डिप्टी गवर्नर थे, निजी कारण बताकर समय से पहले इस्तीफा दे दिया. पीएमओ में प्रधान सलाहकार पीके सिन्हा ने भी, व्यक्तिगत वजह बताकर कार्यकाल पूरा होने से पहले इस्तीफा दे दिया. उर्जित पटेल आरबीआई के गवर्नर थे, उनके इस्तीफे की वजह भी पर्सनल बताई गई. व्यक्तिगत वजह बताकर मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने भी समय से पहले पद छोड़ दिया था. इसके पहले नीति आयोग के उपाध्य अरविंद पनगढ़िया ने भी इस्तीफा दिया, और उसकी वजह बताई व्यक्तिगत. सिर्फ यही नहीं बहुत से अफसर हैं, जो कार्यकाल पूरा होने से पहले पद छोड़ देते हैं. वो भी बिना कोई ठोस वजह बताए क्योंकि उनपर वजह बताने की कोई बाध्यता नहीं होती.